“जो सुमिरत सिधि होइ” भजन एक ऐसा भजन है जो हमें आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह भजन हमें बताता है कि जब हम भगवान के नाम का सुमिरण करते हैं, तो हमें उनसे सम्बंधित सभी सुख और सिद्धि मिलती है।
इस भजन के माध्यम से हम यह समझते हैं कि आध्यात्मिकता एक ऐसी सिद्धि है जो हमें शांति, समृद्धि और आनंद की अनुभूति प्रदान करती है। यह भजन हमें एक संकल्प लेने के लिए प्रेरित करता है कि हम भगवान को सदैव याद करें और उनसे संबंधित सभी सुखों को प्राप्त करें।
भजन – जो सुमिरत सिधि होइ
श्री रामायण प्रारम्भ स्तुति,
जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन ॥
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन ॥ 1 ॥
मूक होइ बाचाल पंगु चढइ गिरिबर गहन ॥
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन ॥ 2 ॥
नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन ॥
करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन ॥ 3 ॥
कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन ॥
जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन ॥ 4 ॥
बंदउ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि ॥
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर ॥ 5 ॥