“शनि प्रदोष व्रत” हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो शनि देव को समर्पित होता है। यह व्रत शुक्ल पक्ष की प्रदोष तिथि को मनाया जाता है। इस दिन शनि भगवान के उपासक इस व्रत का पालन करते हैं और उन्हें अपने दुखों से मुक्ति प्राप्त होती है। इस व्रत में लोग शनि देव की पूजा करते हैं और उनसे अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं। इस दिन की रात्रि में लोग शनि देव की आराधना करते हैं और उनसे वरदान मांगते हैं। इस व्रत का महत्व है कि इसे करने से शनि देव सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं और व्यक्ति को सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलती है।
कथा – शनि प्रदोष व्रत
श्री गणेश आरती
शनि प्रदोष व्रत कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक नगर सेठ थे। सेठजी के घर में हर प्रकार की सुख-सुविधाएं थीं लेकिन संतान नहीं होने के कारण सेठ और सेठानी हमेशा दुःखी रहते थे। काफी सोच-विचार करके सेठजी ने अपना काम नौकरों को सौंप दिया और खुद सेठानी के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े।
अपने नगर से बाहर निकलने पर उन्हें एक साधु मिले, जो ध्यानमग्न बैठे थे। सेठजी ने सोचा, क्यों न साधु से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा की जाए। सेठ और सेठानी साधु के निकट बैठ गए। साधु ने जब आंखें खोलीं तो उन्हें ज्ञात हुआ कि सेठ और सेठानी काफी समय से आशीर्वाद की प्रतीक्षा में बैठे हैं।
साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं। तुम शनि प्रदोष व्रत करो, इससे तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा। साधु ने सेठ-सेठानी प्रदोष व्रत की विधि भी बताई और शंकर भगवान की निम्न वंदना बताई।
हे रुद्रदेव शिव नमस्कार ।
शिवशंकर जगगुरु नमस्कार ॥
हे नीलकंठ सुर नमस्कार ।
शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार ॥
हे उमाकांत सुधि नमस्कार ।
उग्रत्व रूप मन नमस्कार ॥
ईशान ईश प्रभु नमस्कार ।
विश्वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार ॥
दोनों साधु से आशीर्वाद लेकर तीर्थयात्रा के लिए आगे चल पड़े। तीर्थयात्रा से लौटने के बाद सेठ और सेठानी ने मिलकर शनि प्रदोष व्रत किया जिसके प्रभाव से उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ और खुशियों से उनका जीवन भर गया।