“कार्तिक संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत” हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो भगवान गणेश को समर्पित होता है। यह व्रत कार्तिक महीने के चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है और लोग इसे भक्ति और उत्साह के साथ मनाते हैं। इस व्रत में लोग गणेश जी की पूजा करते हैं और उनसे अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं। यह व्रत विभिन्न रूपों में मनाया जाता है और इसका महत्व इस व्रत में उपवास, पूजा और दान करने का होता है। लोग मानते हैं कि इस व्रत को मनाने से गणेश जी हमेशा अपनी कृपा बरसाते हैं और सभी आर्शीवाद पूरे करते हैं।
कथा – कार्तिक संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत
पार्वती जी कहती हैं कि हे भाग्यशाली ! लम्बोदर ! भाषणकर्ताओं में श्रेष्ठ ! कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को किस नाम वाले गणेश जी की पूजा किस भांति करनी चाहिए ।
श्रीकृष्ण जी ने कहा कि अपनी माता की बात सुनकर गणेश जी ने कहा कि कार्तिक कृष्ण चतुर्थी का नाम संकटा है । उस दिन ‘पिंग’ नामक गणेश जी की पूजा करनी चाहिए ।
पूजन पूर्वोक्त रीति से करना उचित है। भोजन एक बार करना चाहिए । व्रत और पूजन के बाद ब्राह्मण भोजन कराकर स्वयं मौन होकर भोजन करना चाहिए ।
मैं इस व्रतका महात्म्य कह रहा हूँ , सावधानी पूर्वक श्रवण किजिए। कार्तिक कृष्ण संकट चतुर्थी को घी और उड़द मिलाकर हवन करना चाहिए । ऐसा करने से मनुष्य को सर्वसिद्धि प्राप्त होती है ।
श्रीकृष्ण जी ने कहा कि वृत्रासुर दैत्य ने त्रिभुवन को जीत करके सम्पूर्ण देवों को परतंत्र कर दिया । उसने देवताओं को उनके लोकों से निष्कासित कर दिया । परिणामस्वरूप देवता लोग दशों दिशाओं में भाग गए ।
तब सभी देव इन्द्र के नेतृत्व में भगवान विष्णु के शरणागत हुए ।
देवों की बात सुनकर विष्णु ने कहा कि समुद्री द्वीप में बसने के कारण वे (दैत्य) निरापद होकर उच्छृंखल एवं बलशाली हो गया हैं। पितामह ब्रह्मा जी से किसी देवों के द्वारा न मरने का उसने वर प्राप्त कर लिया है।
अत: आप लोग अगस्त्य मुनि को प्रसन्न करें । वे मुनि समुद्र को पी जायेंगे।
तब दैत्य लोग अपने पिता के पास चले जायेंगे । आप लोग सुखपूर्वक स्वर्ग में निवास करने लगेंगे ।
अत: आप लोगों का कार्य अगस्त्य मुनि की सहायता से पूरा होगा ।
ऐसा सुनकर सब देवगण अगस्त्य मुनि के आश्रम में गये और स्तुति द्वारा उन्हें प्रसन्न किया।
मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि हे देवताओं ! डरने की कोई बात नहीं है , आप लोगों का मनोरथ निश्चय ही पूरा होगा ।
मुनि की बात से सब देवता अपने-अपने लोक को चले गये । इधर मुनि को चिंता हुई कि एक लाख योजन इस विशाल समुद्र का मैं कैसे पान( पी) कर सकूंगा?
तब गणेश जी का स्मरण करके संकट चतुर्थी के उत्तम व्रत को विधिपूर्वक सम्पन्न किया। तीन महीने तक व्रत करने के बाद उन पर गणेश जी प्रसन्न हुए ।
उसी व्रत के प्रभाव से अगस्त्य जी ने समुद्र को सहज ही पान करके सुखा डाला।
यह उसी व्रत का प्रभाव था कि अर्जुन ने निवात-कवच आदि सम्पूर्ण दैत्यों को पराजित कर दिया।
गणेशजीकी इस बात से पार्वती जी अत्यन्त प्रसन्न हुई कि मेरा पुत्र विश्ववंद्य और सर्व-सिद्धियों का प्रदाता है।
कृष्ण जी कहते हैं कि हे महाराज युधिष्ठिर ! आप भी चतुर्थी का व्रत किजिए । इसके करने से आप शीघ्र ही सब शत्रुओं को जीतकर अपना राज्यपा जायेंगे।
श्रीकृष्ण के आदेशानुसार युधिष्ठिर ने गणेशजी का व्रत किया ।
व्रत के प्रभाव से उन्होंन शत्रुओं को जीतकर अखंड राज्य प्राप्त कर लिया ।
केवल कथा- श्रवण करन से ही हजारों अशवमेघ और सैकड़ों वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता हैं साथ ही पुत्र, पौत्रादि की वृद्धि भी होती है।