सोम प्रदोष व्रत हिंदू धर्म में मान्यता से भरा हुआ है। यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रदोष तिथि को किया जाता है। इस व्रत के माध्यम से भगवान शिव की पूजा की जाती है जो मोक्ष के देवता माने जाते हैं।
सोम प्रदोष व्रत का उल्लेख वेदों में भी मिलता है। इस व्रत के माध्यम से व्यक्ति को सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को करने से मानसिक शांति मिलती है और मन की शुद्धि होती है। इस व्रत के दौरान शिवलिंग की पूजा की जाती है जिससे व्यक्ति को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
सोम प्रदोष व्रत की कथा में बताया गया है कि एक बार भगवान शिव की पूजा करने के लिए एक ब्राह्मण ने प्रदोष तिथि को उनकी पूजा की थी। लेकिन उस दिन उसे बच्चे की पैदाइश हो गई थी और वह शिवलिंग की पूजा नहीं कर पाया। उसने अत्यंत दुखी होकर दिन गुजारा लेकिन रात्रि में उसने स्वप्न में भगवान शिव को देखा जिन्होंने उसे व्रत के महत्व के बारे में बत
कथा – सोम प्रदोष व्रत
जो प्रदोष व्रत सोमवार के दिन पड़ता है वह प्रदोष सोम प्रदोष व्रत कहलाता है। सोमवार को भगवान शिव का दिन माना जाता है अतः इस दिन प्रदोष व्रत होने से उसकी महत्ता और भी अधिक बढ जाती है।
एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था, इसलिए प्रातः होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी।
एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बन्दी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था, इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था।
राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा। एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा और उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया।
ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुनः प्राप्त कर आनन्दपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के माहात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने अन्य सभी भक्तों के दिन भी फेरते हैं।
हर हर महादेव !