“श्री त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग प्रादुर्भाव” कथा हिंदू धर्म में महत्त्वपूर्ण एक पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार, एक समय प्रथम शिवलिंग का विरोध होने के कारण त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति हुई। इस ज्योतिर्लिंग की कहानी उस समय की है, जब देवता-दानव युद्ध की घोषणा की गई थी। युद्ध के समय देवताओं ने ब्रह्माजी से त्रिदेवों के लिए शिवलिंग लेकर आने का आदेश दिया था। ब्रह्माजी ने शिवलिंग लेकर आते समय एक जलदण्ड में पानी लिया था जो उनके शिवलिंग पर गिर गया था। उस जलदण्ड का पानी उस स्थान में टपकता रहा जहां त्रंबक ऋषि तपस्या कर रहे थे और शिवलिंग की जगह उसी स्थान पर त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ। इस ज्योतिर्लिंग का महत्त्व इसीलिए है क्योंकि यह शिव के महानतम स्थानों में से एक है और इससे शिव की महिमा का संदेश मिलता है।

कथा – श्री त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग प्रादुर्भाव पौराणिक

प्राचीन समय में ब्रह्मगिरी पर्वत पर देवी अहिल्या के पति ऋषि गौतम रहते थे और तपस्या करते थे। क्षेत्र में कई ऐसे ऋषि थे जो गौतम ऋषि से ईर्ष्या करते थे और उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश किया करते थे।
एक बार सभी ऋषियों ने गौतम ऋषि पर गौहत्या का आरोप लगा दिया। सभी ने कहा कि इस हत्या के पाप के प्रायश्चित में देवी गंगा को यहाँ लेकर आना होगा।

तब गौतम ऋषि ने शिवलिंग की स्थापना करके पूजा शुरू कर दी। ऋषि की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी और माता पार्वती वहां प्रकट हुए। भगवान ने वरदान मांगने को कहा। तब ऋषि गौतम से शिवजी से देवी गंगा को उस स्थान पर भेजने का वरदान मांगा।

देवी गंगा ने कहा कि यदि शिवजी भी इस स्थान पर ज्योति के रूप मे रहेंगे, तभी वह भी यहाँ रहेगी। गंगा के ऐसा कहने पर शिवजी वहां त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में ब्रह्मा, विष्णु एवं स्वयं महेश लिंग रुप वास करने को तैयार हो गए. तथा अपने वचनानुसार गंगा नदी गौतमी के रूप में वहाँ बहने लगी। गौतमी नदी का एक नाम गोदवरी भी है। दक्षिण दिशा की गंगा कही जाने वाली नदी गोदावरी का यही उद्वगम स्थान है।

त्र्यबंकेश्वर ज्योतिर्लिंग के पास तीन पर्वत स्थित हैं, जिन्हें ब्रह्मगिरी, नीलगिरी और गंगा द्वार के नाम से जाना जाता है।

 

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