सकट चौथ एक पौराणिक व्रत है जो उत्तर भारत के वैष्णव धर्म में मनाया जाता है। इस व्रत को माँ गणेश की पूजा करने के लिए किया जाता है जो नए कार्य शुरू करने से पहले शुभ माना जाता है। इस व्रत को चौथी तिथि को चैत्र माह में मनाया जाता है। इस दिन श्रद्धालु उपवास रखते हुए भगवान गणेश की पूजा करते हैं और उन्हें विभिन्न प्रकार के नैवेद्य चढ़ाते हैं। यह व्रत भक्तों को धन और संतान की प्राप्ति के लिए धन्यवाद देता है।

कथा – सकट चौथ पौराणिक व्रत

प्रथम कथा
कहते हैं कि सतयुग में राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। एक बार तमाम कोशिशों के बावजूद जब उसके बर्तन कच्चे रह जा रहे थे तो उसने यह बात एक पुजारी को बताई।
उस पर पुजारी ने बताया कि किसी छोटे बच्चे की बलि से ही यह समस्या दूर हो जाएगी। इसके बाद उस कुम्हार ने एक बच्चे को पकड़कर आंवा में डाल दिया। वह सकट चौथ का दिन था।

काफी खोजने के बाद भी जब उसकी मां को उसका बेटा नहीं मिला तो उसने गणेश जी के समक्ष सच्चे मन से प्रार्थना की। उधर जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आंवा में उसके बर्तन तो पक गए लेकिन बच्चा भी सुरक्षित था।

इस घटना के बाद कुम्हार डर गया और राजा के समक्ष पहुंच पूरी कहानी बताई। इसके पश्चात राजा ने बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने संकटों को दूर करने वाले सकट चौथ की महिमा का वर्णन किया। तभी से महिलाएं अपनी संतान और परिवार के सौभाग्य और लंबी आयु के लिए व्रत को करने लगीं।

 

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