“श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग प्रादुर्भाव” कथा हिंदू धर्म में एक प्रमुख पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार, भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों में एक भीमशंकर ज्योतिर्लिंग भी होता है। इस ज्योतिर्लिंग की कथा में बताया गया है कि किसी समय दक्ष यज्ञ के दौरान भगवान शिव के अपमान के कारण वे अपनी जान गंवा देते हैं। उनकी पत्नी सती का शव 51 टुकड़ों में बंट जाता है और ज्योतिर्लिंगों का उद्भव होता है। भीमशंकर ज्योतिर्लिंग भी सती के अंगों के स्थान पर प्रकट हुआ था। इस ज्योतिर्लिंग का महत्त्व इसीलिए है क्योंकि इससे भगवान शिव के महानतम प्रेम का संदेश मिलता है।

कथा – श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग प्रादुर्भाव पौराणिक

भीमशंकर ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिवपुराण में मिलता है। शिवपुराण में कहा गया है, कि पुराने समय में भीम नाम का एक राक्षस था। वह राक्षस कुंभकर्ण का पुत्र था। परन्तु उसका जन्म ठीक उसके पिता की मृ्त्यु के बाद हुआ था।
अपनी पिता की मृ्त्यु भगवान राम के हाथों होने की घटना की उसे जानकारी नहीं थी। समय बीतने के साथ जब उसे अपनी माता से इस घटना की जानकारी हुई तो वह श्री भगवान राम का वध करने के लिए आतुर हो गया।

अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने अनेक वर्षों तक कठोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे ब्रह्मा जी ने विजयी होने का वरदान दिया। वरदान पाने के बाद राक्षस निरंकुश हो गया। उससे मनुष्यों के साथ साथ देवी देवताओ भी भयभीत रहने लगे।

धीरे-धीरे सभी जगह उसके आंतक की चर्चा होने लगी। युद्ध में उसने देवताओं को भी परास्त करना प्रारम्भ कर दिया।

जहां वह जाता मृ्त्यु का तांडव होने लगता। उसने सभी और पूजा पाठ बन्द करवा दिए। अत्यन्त परेशान होने के बाद सभी देव भगवान शिव की शरण में गए।

भगवान शिव ने सभी को आश्वासन दिलाया की वे इस का उपाय निकालेगें। भगवान शिव ने राक्षस को नष्ट कर दिया। भगवान शिव से सभी देवों ने आग्रह किया कि वे इसी स्थान पर शिवलिंग रुप में विराजित हो़। उनकी इस प्रार्थना को भगवान शिव ने स्वीकार किया। और वे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रुप में आज भी यहां विराजित है।

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