“रवि प्रदोष व्रत” हिंदू धर्म में एक प्रसिद्ध व्रत है जो रविवार के प्रदोष काल में मनाया जाता है। इस व्रत के माध्यम से भक्त भगवान शिव की पूजा करते हुए अपने जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और संतुलन की प्राप्ति करते हैं। इस व्रत को मनाने से पुण्य की प्राप्ति होती है और मनुष्य के पापों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को करने के लिए भक्तों को शिवलिंग की पूजा करनी होती है और अर्ध्य देने के बाद प्रदोष काल की आरती की जाती है। इस व्रत को नियमित रूप से करने से मनुष्य का मन शांत होता है और उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

कथा – रवि प्रदोष व्रत

एक ग्राम में अति दीन ब्राह्मण निवास करता था। उसकी साध्वी स्त्री प्रदोष व्रत किया करती थी। उसे एक ही पुत्ररत्न था। एक समय की बात है, वह पुत्र गंगा स्नान करने के लिए गया। दुर्भाग्यवश मार्ग में चोरों ने उसे घेर लिया और वे कहने लगे कि हम तुम्हें मारेंगे नहीं, तुम अपने पिता के गुप्त धन के बारे में हमें बतला दो।

बालक दीनभाव से कहने लगा कि बंधुओं! हम अत्यंत दु:खी दीन हैं। हमारे पास धन कहाँ है?
तब चोरों ने कहा कि तेरे इस पोटली में क्या बंधा है?
बालक ने नि:संकोच कहा कि मेरी माँ ने मेरे लिए रोटियां दी हैं।

यह सुनकर चोरों ने अपने साथियों से कहा कि साथियों! यह बहुत ही दीन-दु:खी मनुष्य है अत: हम किसी और को लूटेंगे। इतना कहकर चोरों ने उस बालक को जाने दिया।

बालक वहाँ से चलते हुए एक नगर में पहुंचा। नगर के पास एक बरगद का पेड़ था। वह बालक उसी बरगद के वृक्ष की छाया में सो गया। उसी समय उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उस बरगद के वृक्ष के पास पहुंचे और बालक को चोर समझकर बंदी बना राजा के पास ले गए। राजा ने उसे कारावास में बंद करने का आदेश दिया।

ब्राह्मणी का लड़का जब घर नहीं लौटा, तब उसे अपने पुत्र की बड़ी चिंता हुई। अगले दिन प्रदोष व्रत था। ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया और भगवान शंकर से मन-ही-मन अपने पुत्र की कुशलता की प्रार्थना करने लगी।

भगवान शंकर ने उस ब्राह्मणी की प्रार्थना स्वीकार कर ली। उसी रात भगवान शंकर ने उस राजा को स्वप्न में आदेश दिया कि वह बालक चोर नहीं है, उसे प्रात:काल छोड़ दें अन्यथा तुम्हारा सारा राज्य-वैभव नष्ट हो जाएगा।

प्रात:काल राजा ने शिवजी की आज्ञानुसार उस बालक को कारावास से मुक्त कर दिया गया। बालक ने अपनी सारी कहानी राजा को सुनाई।

सारा वृत्तांत सुनकर राजा ने अपने सिपाहियों को उस बालक के घर भेजा और उसके माता-पिता को राजदरबार में बुलाया। उसके माता-पिता बहुत ही भयभीत थे। राजा ने उन्हें भयभीत देखकर कहा कि आप भयभीत न हो। आपका बालक निर्दोष है। राजा ने ब्राह्मण को 5 गांव दान में दिए जिससे कि वे सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकें। इस तरह ब्राह्मण आनन्द से रहने लगा। शिव जी की दया से उसकी दरिद्रता दूर हो गई।

अत: जो भी मनुष्य रवि प्रदोष व्रत को करता है, वह सुखपूर्वक और निरोगी होकर अपना पूर्ण जीवन व्यतीत करता है।

 

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